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हॉकर / महेन्द्र भटनागर

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यह क्या

रोज़-रोज़
तरबतर खून से
अख़बार फेंक जाते हो तुम
घर में मेरे ?

तमाम हादसों से रँगा हुआ
अंधाधुंध गोलियों के निशान
पृष्ठ-पृष्ठ पर स्पष्ट उभरते !

छूने में.....पढ़ने में इसको
लगता है डर,
लपटें लहराता
जहर उगलता
डसने आता है अख़बार !

यद्यपि
यही ख़बर सुन कर
सोता हूँ हर रात
कि कोई कहीं
अप्रिय घटना नहीं घटी,
तनाव है
किन्तु नियंत्रण में है सब !