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होंठों पे मेरे आपकी आई कभी ग़ज़ल / आरती कुमारी
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होंठों पे मेरे आपकी आई कभी ग़ज़ल
शरमा गई हूँ मैं तो लजाई कभी ग़ज़ल
एहसास तेरे होने का रहता है हर जगह
यादों में मेरे छुप के समाई कभी ग़ज़ल
तेरी खुशी के वास्ते जो दर्द सह लिए
आँखों ने आँसुओं में बहाई कभी ग़ज़ल
तुम रूठ भी गए तो मनाने के वास्ते
रोने लगी कभी तो सुनाई कभी ग़ज़ल
होंठों की तश्नगी को बुझाने के वास्ते
आँखों के मयकदे से पिलाई कभी ग़ज़ल