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होकर अयाँ वो ख़ुद को छुपाये हुए-से हैं / फ़िराक़ गोरखपुरी
Kavita Kosh से
होकर अयाँ<ref>स्पष्ट, प्रत्यक्ष</ref> वो ख़ुद को छुपाये हुए-से हैं
अहले-नज़र<ref>नज़र वाले</ref> ये चोट भी खाये हुए-से हैं
वो तूर<ref>'फ़िरेर्दू’ का बड़ा बेटा जिसने ‘तूरान बसाया था, महारथी, बहुत बड़ा बहादुर</ref> हो कि हश्रे-दिल अफ़्सुर्दगाने-इश्क़<ref>प्रेम में दुखी लोग</ref>
हर अंजुमन<ref>महफ़िल</ref> में आग लगाये-हुए-से हैं
सुब्हे-अज़ल<ref>अनादि काल की सुबह</ref> को यूँ ही ज़रा मिल गयी थी आंख
वो आज तक निगाह चुराये-हुए-से हैं
हम बदगु़माने-इश्क़ तेरी बज़्मे-नाज़ से
जाकर भी तेरे सामने आये हुए-से हैं
ये क़ुर्बो-बोद<ref>सामीप्य एवं दूरी</ref> भी हैं सरासर फ़रेबे-हुस्ने
वो आ के भी 'फ़िराक़' न आए-हुए-से हैं
शब्दार्थ
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