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होगा एक और शब्द / मोहन राणा
Kavita Kosh से
नीली रंगतें बदलती
आकाश और लहरों की
बादल गुनगुनाता कुछ
सपना-सा खुली आँखों का
कैसा होगा यह दिन
कैसा होगा
यह वस्त्र क्षणों का
ऊन के धागों का गोला
समय को बुनता
उनींदे पत्थरों को थपकाता
होगा एक और शब्द
कहने को
यह किसी और दिन
रचनाकाल: 28.5.2001