होटल में लफड़ा / अशोक चक्रधर
जागो जागो हिन्दुस्तानी,
करता ये मालिक मनमानी।
प्लेट में पूरी
अभी बची हुई है
और भाजी के लिए मना जी !
वा....जी !
हम ग्राहक, तू है दुकान...
पर हे ईश्वर करुणानिधान !
कुछ अक़्ल भेज दो भेजे में
इस चूज़े के लिए,
अरे हम बने तुम बने
इक दूजे के लिए।
भाजी पर कंट्रोल करेगा,
हमसे टालमटोल करेगा
देश का पैसा गोल करेगा,
इधर हार्ट में होल करेगा
तो देश का बच्चा बच्चा बच्चू,
चेहरे पर तारकोल करेगा।
सुनो साथियो !
इस पाजी ने मेरी प्लेट में
भाजी की कम मात्रा की थी,
नमक टैक्स जब लगा
तो अपने गांधी जी ने
डांडी जी की यात्री की थी।
पैसा पूरा, प्याली खाली,
हमने भी सौगंध उठा ली-
यह बेदर्दी नहीं चलेगी,
अंधेरगर्दी नहीं चलेगी।
जनशोषण करने वालों को
बेनकाब कर
अपना आईना दिखलाओ,
आओ आओ,
ज़ालिम से मिलकर टकराओ।
पल दो पल का है ये जीवन
तुम जीते जी सिर न झुकाओ,
अत्याचारी से भिड़ जाओ।
नेता इससे मिले हुए
वोटर के आगे झूठ गा रहे,
भ्रष्टाचार और बेईमानी
दोनों मिलकर ड्यूट गा रहे।
घोटालों के महल हवेली,
भारत मां असहाय अकेली !
तड़प रही है भूखी प्यासी,
अब हम सारे भारतवासी,
जब साथ खड़े हो जाएंगे,
तो एक नया इतिहास बनाएंगे।
भारत मां के सपूतो
इस मिट्टी के माधो,
अब चुप्पी मत साधो !
क्रांति का बिगुल बजाओ,
मेरी आवाज़ सुनो,
टकराने का अंदाज़ चुनो।
अगर तुम्हें अपना ज़मीर
ज़रा भी प्यारा है,
तो हर ज़ोर ज़ुल्म की टक्कर में
संघर्ष हमारा नारा है।