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होठों पर हर ख़ुशी को सजाने के बाद भी / आदर्श गुलसिया
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होठों पर हर ख़ुशी को सजाने के बाद भी
दुश्मन-सा है वह हाथ मिलाने के बाद भी
यह इंतिहा रही है मेरे इश्क़ की जनाब
मुझको भुला न पाए भुलाने के बाद भी
सच बोलने का अब भी है जज़्बा मेरा वही
डरता नहीं हूँ जीभ कटाने के बाद भी
है प्यार उनको कितना जो आई हैं तितलियाँ
कागज़ के फूल मेरे सजाने के बाद भी
पहचानने से मुझको मुकरते रहे हैं वो
उनके दिए ही ज़ख़्म दिखाने के बाद भी
दस्तूर इश्क़ का तो है मौका यही मियाँ
रूठे रहें वह मेरे मनाने के बाद भी
सच्चाई का नतीजा है 'आदर्श' देख लो
राशन नहीं है घर में कमाने के बाद भी