भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
होड़ / शशि सहगल
Kavita Kosh से
दुनिया का जंगल
जंगल में सैलाब
सैलाब से फिसलन
पर
क्या खूब है आदमी
अपने साथी को बिछा
पाँव रखता हुआ
आगे बढ़ जाता है।