भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

होथौं तोरे नाम / ब्रह्मदेव कुमार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुनोॅ हो लोग सब हाटोॅ के
रखियोॅ लाज हमरोॅ बातोॅ के।
अनपढ़-निरक्षर भैया-भौजी के
भाग खुललौं आबेॅ टाटोॅ केॅ।

पैंट-शर्ट जुŸाा-घड़ी पिन्ही केॅ
राज कुमारे जैसनोॅ चलथौं
दसखत करै लेॅ कहबोॅ तेॅ भैया
अंगुठा तुरत बढ़ाय केॅ देथौं।
पढ़ै-लिखै लेॅ कुछु जों कहबोॅ
हँसी-हँसी केॅ दाँत बिदोरथौं
गज्जी साड़ी पिन्ही केॅ भौजी
श्री देवी के जैसनोॅ लागथौं
वोहोॅ भुसगोल छै भैये नांकी
दोसरां कन जाय केॅ टी वी देखथौं ।
पूछबौं कि कुछु बुझै छोॅ भौजी
लाजोॅ सेॅ दाँत ठिठियाय देथौं।

भैया-भौजी केॅ करौं प्रणाम
पढ़ै-लिखै के करोॅ तों काम
पढ़ी-लिखी केॅ शिक्षित बनोॅ
ओकरा सेॅ होथौं तोरे नाम।
दस बीच दसखत करी केॅ भैया
मोंछ घुमाय दोॅ रटियाय केॅ।