भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

होना मत हैरान परिंदे / शम्भुनाथ तिवारी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

होना मत हैरान परिंदे
दुनिया को पहचान परिंदे

पिंजड़े से बाहर मत आना
बात पते की मान परिंदे

कैसा ज़हर हवाओं में है
तू इससे अनजान परिंदे

बाहर आकर पछताएगा
मान भले मत मान परिंदे

तरसेगा दाने-दाने को
बेशक दुनिया छान परिंदे

खुली हवा में उड़ना शायद
रहा नहीं असान परिंदे

जाने कौन कहाँ कर जाए
तुमको लहूलुहान परिंदे

बहुत हो गए हैं दुनिया में
पत्थर के इनसान परिंदे

तू महफ़ूज़ सिर्फ़ पिंजड़े में
बाहर खतरे-जान परिंदे