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होने और न होने के बीच-2 / पीयूष दईया
Kavita Kosh से
कोई भूमि(का) नहीं
मरमर सिर्फ़
भिन्न लगे अभिन्न
भिनसारे तक
पदचाप में
अगेह
--जो मेरा प्राप्य है
चुन लूंगा--
देवनागरी को
पालागन