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होन लागे केकी, कुहकार कुंज कानन मैं / लाल कवि

होन लागे केकी, कुहकार कुंज कानन मैं,
झिल्ली-झनकार, दबि देह दहने लगे।
दौरि-दौरि धुरवा, धुधारे मारे भूधर से,
भूधर भ्रमाय, चित चोय चहने लगे॥