भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
होम्यो कविता: नेट्रम सल्फ / मनोज झा
Kavita Kosh से
					
										
					
					जी मिचलाना, पेट फूलना, 
खट्टी या तीता हो वमन। 
सिर दर्द, चक्कर या कामला 
हाथ पैर छाती में जलन॥ 
खाँसी होता ढीली फिर भी
दर्द करे बाँयीं छाती। 
दोपहर बाद आता बुखार 
जब मौसम होता बरसाती॥
कपड़ा उतारते ही खुजली हो, 
स्राव बहे पतली पीली। 
बसंत का हो चर्म रोग
या जब निवास हो तर गीली॥
डल्का, बेल, मर्क या थूजा
आर्स भी करता काफी हेल्प। 
नकसीर, गठिया, पलकों पर बतौरी
याद करें तब नेट्रम सल्फ॥
	
	