होलिका दहन / शिशुपाल सिंह यादव ‘मुकुंद’
किंशुक फुले हैं लाल-लाल,सरसो पीली फूली है
नव बसन्त-मय फागुन लख कर,रसा प्रकृति संग झूली है
होली पर्व अर्चना प्रमुदित,पट केसरिया पहन करो
होवे यह ऋतुराज प्रफुल्लित,डाह-होलिका दहन करो
नए अन्न की पूजा कर लो,आई है यह मनहर होली
खाओ -खेलो,हंसो -हंसा लो,बोलो प्रिय अमृत बोली
सांसारिक प्रपंच को भूलो,राग-द्वेष का हनन करो
नव निर्माण देश का होवे ,डाह-होलिका दहन करो
विहारो लिए संग में अपने,प्रेम-गुलाल भरी झोली
उठे एकता लहार तरंगित,सुदृढ़ रहे मानव-टोली
चाहे कुछ भी हो जाए किन्तु तुम,साँच मार्ग को ग्रहण करो
मानवता दिखला दो जग को ,डाह-होलिका दहन करो
गाओ फाग उमंगित होकर,चले प्यार रंग पिचकारी
उड़े गुलाल-अबीर चतुर्दिक,महके सुख की फुलवारी
जीयो और जिलाओ सब को,नए वर्ष का नमन करो
भारत के उत्थान हेतु नित,डाह-होलिका दहन करो
सतयुग में प्रह्लाद इसी दिन,जा बैठा अंगारो पर
इससे पहले कई बार वह, चला शस्त्र की धारों पर
नरसिंह सा नेता पाने को,कष्ट अनेकों सहन करो
राम-राम रटते निशि-बासर,डाह-होलिका दहन करो