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होली-5 / नज़ीर अकबराबादी

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जुदा न हमसे हो ऐ ख़ुश जमाल<ref>अच्छे सौन्दर्य वाले, सुन्दर</ref> होली में।
कि यार फिरते हैं यारों के नाल<ref>साथ</ref> होली में।
हर एक ऐश से हैगा बहाल होली में।
बहार और कुछ अब की है साल होली में।
मज़ा है सैर है हर सू<ref>तरफ, ओर</ref> कमाल होली में॥1॥

सभों के ऐश को फ़ागुन का यह महीना है।
सफ़ेदो ज़र्द<ref>केसरया</ref> में लेकिन कमाल कीना<ref>खुंस, रंजिश</ref> है।
तिला<ref>सोना</ref> का ज़र्दकने<ref>केसरया के पास</ref> सर ब सर ख़जीना<ref>ख़ज़ाना</ref> है।
सफ़ेद पास फ़क़त सीम<ref>चांदी</ref> का दफ़ीना<ref>ख़ज़ाना</ref> है।
हर एक दिल में है रुस्तमो<ref>प्रसिद्ध ईरानी पहलवान, वीर, योद्धा</ref> जाल<ref>रुस्तम पहलवान का पिता</ref> होली में॥2॥

कहा सफे़द से आखि़र को ज़र्द ने यह पयाम<ref>संदेश</ref>।
कि ऐ सफ़ेद! तू अब छोड़ दे जहां का मुक़ाम।
मैं आया अब तो मेरा बन्दोबस्त होगा तमाम।
तू मुझसे आन के मिल छोड़ अपनी ज़िद का कलाम<ref>कथन</ref>।
वगरना खींचेगा तू अनफ़आल होली में॥3॥

मिलेगा मुझसे तो मैं तुझको फिर बढ़ाऊँगा।
बनाके आपसा पास अपने ले बिठाऊँगा।
कहा सफ़ेद ने मैं मुत्लक़न<ref>कदापि</ref> न आऊंगा।
तुझी को बाद कई दिन के मैं भगाऊंगा।
तू अपना देखियो क्या होगा हाल होली में॥4॥

यह सुनके तैश<ref>क्रोध</ref> में आ ज़र्द का सिपह सालार<ref>सेनापति</ref>।
चढ़ आया फ़ौज को लेकर सफ़ेद पर यकबार।
इधर सफ़ेद भी लड़ने को होके आया सवार।
सफे़<ref>पंक्ति, कतार</ref> मुक़ाबला दोनों की जब हुई तैयार।
हुआ करख़्त<ref>कठोर, कर्कश, सख़्त</ref> जबाबो सवाल होली में॥5॥

मिला इधर से सफ़ेद और उधर से ज़र्द बहार।
घटाएं रंग बिरंग फ़ौजों की झुकीं सरशार<ref>परिपूर्ण, मस्त</ref>।
पखाले<ref>बड़ी मशक</ref> मशके<ref>पानी भरने की चमड़े की खाल</ref> छुटीं रंग की पड़ी बौछार।
और चार तरफ़ से पिचकारियों की मारामार।
उड़ा ज़मीं से ज़मां<ref>संसार, विश्व</ref> तक गुलाल होली में॥6॥

यहां तो दोनों में आपस में हो रही यह जंग<ref>लड़ाई</ref>।
उधर से आया जो एक शोख़<ref>चंचल, चपल</ref> बारुख़ गुल रंग।
हज़ारों नाज़नी<ref>सुकुमारी, सुन्दरी</ref> माशूक़ और उसके संग।
नशे में मस्त, खुली जुल्फ़, जोड़े रंग बरंग।
कहा कि पूछो तो क्या है यह हाल होली में॥7॥

कहा किसी ने कि ऐ बादशाहे! महरुमा!।
सफ़ेदी ज़र्द यह आपस में लड़ रहे हैं यहां।
यह सुन के आप वह दोनों के आगया दरमियां।
इधर से थांबा उसे और उधरसे उसको कि हां।
तुम इस कदर न करो इख़्तिलाल<ref>विघ्न, गड़बड़ी</ref> होली में॥8॥

महा तुम्हारी ख़सूमत<ref>शत्रुता, दुश्मनी</ref> का माजरा<ref>हाल</ref> है क्या।
कहा सफ़ेद ने नाहक यह ज़र्द है लड़ता।
यह सुनके उसने वहीं अपना एक मगा जोड़ा।
फिर अपने हाथ से जोड़े को छिड़कवा रंगवा।
कहा कि दोनों रहो शामिल हाल होली में॥9॥

फिर अपने तन में जो पहनी वह खि़लअतें<ref>राज्य की ओर से सम्मानार्थ दिए जाने वाले वस्त्र</ref> रंगीं।
सभों को हुक्म किया तुम भी पहनों अब यूं ही।
हज़ारों लड़कों ने पहने वह जोड़े फिर बूं हीं।
पुकारी खल्क़<ref>दुनियाँ के लोग</ref> कि इन्साफ़ चाहिए यूं ही।
हुआ फिर और ही हुस्नो जमाल होली में॥10॥

कियां मैं क्या कहूं फिर इस मजे़ की ठहरी बहार।
जिधर को आंख उठाकर नज़र करो एक बार।
हज़ारों बाग रवाँ हैं करोड़ों हैं गुलज़ार।
चमन चमन पड़े फिरते हैं सरब गुल रुख़सार<ref>फूल जैसे गालों वाले</ref>।
अजब बहार के हैं नौनिहाल होली में॥11॥

जो नहर हुस्न की है मौज़ मार चलती है।
अलम<ref>झंडा</ref> लिए हुए आगे बहार चलती है।
अगाड़ी मस्त सफ़े गुल इज़ार चलती है।
पिछाड़ी आशिक़ों की सब क़तार चलती है।
सभों के दिल में खु़शी का खयाल होली में॥12॥

गुलाल अबीर से कितने भरे हैं चौपाये।
तमाम हाथों में गड़ुवे भी रंग के लाये।
कोई कहे है किसी से ‘कि हम भी लो आये’।
तो उससे कहता वहहंसकर कि ‘आ मेरे जाये’।
हंसी खु़शी का का है क़ालोमक़ाल<ref>वाद-विवाद</ref> होली मंे॥13॥

इसी बहार से गोकुलपरे में जा पहुंचे।
और मंडी नाई की और सईद खां की मंडी से।
सब आलम गंज में शाहगंजो ताजगंज फिरे।
हैं शहर में नहीं और गिर्द शहर में रहते।
हुआ हुजूम<ref>भीड़</ref> का बहरे कमाल होली में॥14॥

सभों को लेके किनारी बजार में आये।
फिर मोती कटरे फुलट्ठी के लोग सब धाये।
कि पीपल मंडी व पन्नीगली के भी आये।
जहां तहां से यह घिर घिर के लोग सब धाये।
कि बेनवाओं<ref>दीन-हीन, दरिद्र</ref> के देखें ज़माल होली में॥15॥

हुई जो सब में शरीफों<ref>कुलीन, सज्जन, सभ्य</ref> रज़ील<ref>नीच, अधम, कमीना</ref> में होली।
तो पहले रंग की पिचकारियों की मार हुई।
किसी का भर गया जामा किसी की पगड़ी भरी।
किसी के मंुह पे लगाई गुलाल की मुट्ठी।
तो रफ़्ता रफ़्ता हुई फिर यह चाल होली में॥16॥

घटाएं मशकों पखालों की झूम कर आई।
सुनहरी बिजलियां पिचकारियों की चमकाईं।
सबा<ref>शीतलमंद समीर</ref> ने रंग की बौछारें आके बरसाई-
हवा ने आन के सावन की झड़ियां बनवाई।
लगी बरसने को मशको पखाल होली में॥17॥

इधर गुलाल का बादल भी छा गया घनघोर।
सदाये<ref>आवाज</ref> राद<ref>बादल का कड़कना</ref> हुई हर किसी का गुल और शोर।
यह लड़के नाज़नी<ref>सुकुमार सुन्दर</ref> बोलें हैं कोकिला जों मोर।
तमाम रंग की बौछार से है शोराबोर।
अजब है रंग, लगी बरशकाल<ref>वर्षाऋतु</ref> होली में॥18॥

लगा के चौक से और चार शू<ref>तरफ</ref> तलक देखा।
कि जगह एक भी तिल धरने की नहीं है ज़रा।
तमाम भीड़ से हर तरफ़ बन्द है रस्ता।
तिस ऊपर रंग का बादल है इस क़दर बरसा।
कि हर गली में बहा ढोलीखाल<ref>आगरे में घटिया नामक मुहल्ले से पश्चिम का एक मुहल्ला</ref> होली में॥19॥

‘नज़ीर’ होली तो है हर नगर में अच्छी खूब।
वलेक<ref>लेकिन</ref> ख़त्म हुआ आगरे पे ये असलूब<ref>तरीका, तौर</ref>।
कहां हैं ऐसे सनम<ref>प्रिय</ref> और कहां हैं ये महबूब<ref>प्रिय</ref>।
जिन्हों के देखे से आशिक़ का होवे ताज़ा क़लूब<ref>दिल</ref>।
तेरी निराली है यां चाल ढाल होली में॥20॥

शब्दार्थ
<references/>