होली18 / नज़ीर अकबराबादी
होली हुई नुमायां सौ फ़रहतें सभलियां।
डफ बजने लागे हरजां, और इश्रतें और छलियां॥
बातें हंसी खु़शी की, हर लब से फिर निकलियां।
मै<ref>शराब</ref> के नशों ने हरदम तर्जे़ खुर्द की छलियां॥
रंग और गुलाल पड़के रंगी हुई हैं गलियां।
दिखलाई अपनी क्या-क्या होली ने रंग रलियां॥1॥
पड़ने से रंग हर जां आपस में यार भीगे।
गुलशोर भी मचाए और बार-बार भीगे॥
रंगत के जो खड़े थे उम्मीदवार भीगे।
आशिक भी तरवतर है और गुल इज़ार<ref>गुलाब जैसे सुकुमार गालों वाला</ref> भीगे॥
रंग औ गुलाल पड़के रंगी हुई हैं गलियां।
दिखलाई अपनी क्या-क्या होली ने रंग रलियां॥2॥
कुछ ठाठ आके ठहरे कुछ स्वांग रूप चमके।
कुछ गिर्द उनके खुश हो अम्बोह आन धमके॥
अश्शाक़ में भी हरदम रंग उल्फ़तों के दमके।
खू़ंबा के भी हर इक जा हुस्नोजमाल झमके॥
रंग औ गुलाल पड़के रंगी हुई हैं गलियां।
दिखलाई अपनी क्या-क्या होली ने रंग रलियां॥3॥
देखो जिधर उधर को है सैर और तमाशा।
कुछ नाचने के खटके कुछ राग रंग ठहरा॥
ठठ्ठे हंसी के चर्चे ऐशो तरब का चर्चा।
सौ सौ बहारें चुहलें आई नज़र अहा हा॥
रंग औ गुलाल पड़के रंगी हुई हैं गलियां।
दिखलाई अपनी क्या-क्या होली ने रंग रलियां॥4॥
हैं रंग साथ लेकर आपस में यार फिरते।
आया जो उनके आगे खूब उसपे रंग छिड़के॥
कोई किसी से भागें कोई किसी को पकड़े।
भीगे बदन सरापा<ref>सिर से पैर तक</ref> मुंह लाल ज़र्द कपड़े॥
रंग औ गुलाल पड़के रंगी हुई हैं गलियां।
दिखलाई अपनी क्या-क्या होली ने रंग रलियां॥5॥
होती हैं चुहलें क्या क्या नाज़ो अदा की भीगें।
मुंह पर गुलाल, भोंहैं उस आश्ना<ref>मित्र, यार</ref> की भीगें।
जुल्फ़ें भी रंग से हैं हर दिलरुवा की भीगें।
पोशाके़ं बदन में हर दिलरुवा की भीगें।
रंग औ गुलाल पड़के रंगी हुई हैं गलियां।
दिखलाई अपनी क्या-क्या होली ने रंग रलियां॥6॥
हैं रंग से जो भीगे महबूब हुस्न वाले।
हंसते हैं सब खु़शी से बांहें गले में डाले॥
कपड़े छिड़कवां उनके हर दिल को खुश हैं आते।
मुखड़े हैं जगमगाते तुर्रे हैं झमझमाते॥
रंग और गुलाल पड़के रंगी हुई हैं गलियां।
दिखलाई अपनी क्या-क्या होली ने रंग रलियां॥7॥
होली की यारो क्या-क्या कहने में आती खूबी।
कुछ ज़ोर ही मजे़ की हरदम बहार देखो॥
सुनते ही आए क्या! क्या! बातें हंसी खुशी की।
आगे ‘नज़ीर’ अब तो क्या कहिए वाह! वाह! जी॥
रंग और गुलाल पड़के रंगी हुई हैं गलियां।
दिखलाई अपनी क्या-क्या होली ने रंग रलियां॥8॥