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होली19 / नज़ीर अकबराबादी

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जब खेली होली नंद ललन हँस हँस नंदगाँव बसैयन में।
नर नारी को आनन्द हुए खु़शवक्ती छोरी छैयन में॥
कुछ भीड़ हुई उन गलियों में कुछ लोग ठठ्ठ अटैयन में।
खु़शहाली झमकी चार तरफ कुछ घर-घर कुछ चौपय्यन में॥
डफ बाजे, राग और रंग हुए, होली खेलन की झमकन में॥
गु़लशोर गुलाल और रंग पड़े हुई धूम कदम की छैयन में॥1॥

हर जगह होरी खेलन की तैयारी सब रंग जतन।
अम्बोह हुए खुशवक्ती के और ऐश खुशी के रूप बरन।
पिचकारी झमकी हाथों में और झमके तन के सब अबरन॥
हर आन हर इक नर नारी से होरी खेलन लागे नंद ललन।
डफ बाजे, राग और रंग हुए, होली खेलन की झमकन में॥
गु़लशोर गुलाल और रंग पड़े हुई धूम कदम की छैयन में॥2॥

कुछ बांधे साथ अबीर अपने कुछ रंग उठाए बर्तन में।
कुछ कूदें उछलें खुश होकर कुछ लपकें होरी खेलन में॥
कुछ रंगी सबके हाथ भरे कुछ कपड़े भीग रहे तन में।
हर वक्त खुशी हर आन हंसी सौ खूबी घर औ आंगन में।
डफ बाजे, राग और रंग हुए, होली खेलन की झमकन में॥
गु़लशोर गुलाल और रंग पड़े हुई धूम कदम की छैयन में॥3॥

नंदगांव में जब यह ठाठ हुए, बरसाने में भी धूम मची।
श्री किशन चले होली खेलन को ले अपने ग्वाल और बाल सभी॥
आ पहुंचे वट के बिरछन में हर आन खुशी चमकी झमकी।
वां आई राधा गोरी भी ले संग सहेली सब अपनी॥
डफ बाजे, राग और रंग हुए, होली खेलन की झमकन में॥
गु़लशोर गुलाल और रंग पड़े हुई धूम कदम की छैयन में॥4॥

घनश्याम इधर से जब आए वां गोरी की कर तैयारी।
और आई उधर से रंग लिए खुश होती वां राधा प्यारी॥
जब श्याम ने राधा गोरी के इक भर कर मारी पिचकारी।
तब मुख पर छीटे आन पड़ी और भीज गई तन की सारी॥
डफ बाजे, राग और रंग हुए, होली खेलन की झमकन में॥
गु़लशोर गुलाल और रंग पड़े हुई धूम कदम की छैयन में॥5॥

जब ठहरी लपधप होरी की औरचलने लगीं पिचकारी भी।
कुछ सुर्ख़ी रंग गुलालों की, कुछ केसर की ज़रकारी भी॥
होरी खेलें हंस-हंस मनमोहन और उनसे राधा प्यारी भी।
यह भीगी सर से पांव तलक और भीगे किशन मुरारी भी॥
डफ बाजे, राग और रंग हुए, होली खेलन की झमकन में॥
गु़लशोर गुलाल और रंग पड़े हुई धूम कदम की छैयन में॥6॥

जब देर तलक मनमोहन ने वां होरी खेली रंग भरी।
सब भीगी भीड़ जो आई थी साथ उनके ग्वालों बालों की॥
तन भीगा किशन कन्हैया का यों रंगों की बौछार हुई।
और भीगी राधागोरी भी और उनकी संग सहेली भी॥
डफ बाजे, राग और रंग हुए, होली खेलन की झमकन में॥
गु़लशोर गुलाल और रंग पड़े हुई धूम कदम की छैयन में॥7॥

चर्चे चुहलें जब यों ठहरी खुशहाल हुए, दिल हर बारी।
कुछ आज ख़ुशी और खू़बी की कुछ बातें हुई प्यारी-प्यारी॥
यों होरी राधा प्यारी से जब हंस हंस खेले बनवारी।
वह रूप ‘नज़ीर’ आके झमके उन रूपों को हो बलिहारी॥
डफ बाजे, राग और रंग हुए, होली खेलन की झमकन में॥
गु़लशोर गुलाल और रंग पड़े हुई धूम कदम की छैयन में॥8॥

शब्दार्थ
<references/>