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होली आज मनाएँ / एक बूँद हम / मनोज जैन 'मधुर'
Kavita Kosh से
सारे रंग मलाल भुलाकर
होली आज मनाएँ
मन की थाली में रहीम ने
भावों का रंग घोला
रंग लगाकर राम तोड़ता
बरसों का अनबोला
आओ मिलकर हम नफरत को
होली में सुलगाएँ
बच्चे थामे घूम रहे हैं
रंग भरी पिचकारी
देवर ने भाभी की देखो
सूरतिया रंग डारी
रंग पर्व में मर्यादा की
रेखा भूल न जाएँ
बना विदूषक प्रेम रंग में
नाच रहा है छैला
भर भर मुट्ठी रंग उड़ाती
बालकनी से लैला
टूटे हुए दिलों को जोड़ें
रंग अबीर उड़ाएँ
गली-गली हुड़दंग मचाती
हुरियारों की टोली
आज कन्हैया को रंग देना
है राधा की चोली
रंग पर्व में अधर अधर पर
रच श्रंगार सजाएँ
जीवन के इस युद्ध क्षेत्र में
उखड़ी जिनकी सॉसें
चलो पोंछने ऑंसू उनके
नम हैं जिनकी ऑंखें
सम्बल के रंग भर ऑंखों में
चलकर धीर बॅंधाएँ