होली गीत / 3 / भील
टेक- मुरारी झपटियो मेरो चीर मुरारी।
चौक-1 राती घांगर रंग सिर पर झपटी वैसिया वरणी साड़ी।
कच्चे पक्के डोर रेसम के हो तोड़े
तो झड़गइ कोर किनारी, देखो रे अनोखा खिलाड़ी,
झपटियो मेरो चीर मुरारी।
चौक-2 सात सखी मिल गई जमना पे
वहाँ बैठे कृष्ण मुरारी,
घर मेरा दुर घांगर सिर भारी, तो में नाजुग पणियारी
देखो रे अनोखा खिलाड़ी, झपटियो मेरो चीर मुरारी।
चौक-3 कुएं पे जाऊँ तो रे किच मचत है,
जमना बेहती है गेहरी।
गोकुल जाऊँ तो रंग से भींजूं
तो अण साँवरा से मैं हारी, देखो रे अनोखा खिलाड़ी,
झपटियो मेरो चीर मुरारी।
चौक-4 आगल सुणत मोरि बगल सुणत हैं,
सासू सुणेंगा देगि गाली,
पिउजी सुणेंगा तो पकड़ बुलावे, तो बात भई बड़ि भारी,
देखो रे अनोखा खिलाड़ी, झपटियो मेरो चीर मुरारी।
छाप- बाई पड़ोसण अरज करत है,
विनती कर-कर हारी।
ऐसी सिख काऊ को नहिं देना।
तो चन्द्रसखी बलिहारी,
देखो रे अनोखा खिलाड़ी,
झपटियो मेरो चीर मुरारी।
- गोपी कहती है कि- श्रीकृष्ण ने मेरा चीर छपटकर छीन लिया। लाल मटकी मेरे सिर पर और वैसे ही रंगी की साड़ी थी, उस साड़ी में कच्चे-पक्के रेशम के धागे थे, वे तोड़ दिये। धागे टूटने से साड़ी की कोर (बार्डर) निकलकर अलग हो गई। देखो रे! अनोखे खिलाड़ी को, मेरा चीर झपट लिया।
मैं सखियों के साथ यमुना पर पहुँची, वहाँ श्रीकृष्ण मिल गये। मेरे सिर पर भारी मटकी, मेरा घर दूर है और मैं कोमल (नाजुक) पणिहारी हूँ। मुझे रोको मत, मटकी का वजन लग रहा है। दूर जाना है और मैं नाजुक हूँ, फिर भी कृष्ण न माने और मेरी चीर (साड़ी) छीन ली।
गोपी कहती है कि कुएँ पर जाऊँ तो कीचड़ मचता है अर्थात् कुएँ पर पानी से भिगो देते हैं। यमुना पर जाती हूँ तो यमुना गहरी बहती हैं अर्थात् वहाँ भी मुझे भिगो देते हैं। गोकुल में जाऊँ तो रंग से भीगूँ (मुझे श्रीकृष्ण रंग से सराबोर कर देते हैं)। मैं इस साँवरे श्रीकृष्ण से हार गई। इस अनोखे खिलाड़ी से हार गई। मेरी चीर झपट लिया।
एक गोपी कहती है- मेरे अगल-बगल के (आसपास रहने वाले) और मेरी सास सुनेगी तो मुझे गाली देगी। मेरे पति सुनेंगे तो बड़ी भारी बात हो जायेगी (बखेड़ा हो जायेगा)। मुझे पकड़कर बुलवायेंगे। देखो! इस अनोखे खिलाड़ी को मेरी चीर छीन लिया।
पड़ोस की बाई से कहती है कि मैं विनती कर-कर हार गई कि ऐसी सीख किसी को न देना (पराई स्त्री के चीर को कोई न झपटे), इस अनोखे खिलाड़ी कृष्ण को देखो, मेरी चीर झपट लिया।