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होली / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
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नूनू रे, होली आवी गेलै
रंगोॅ के दिन आबी गेलै।
हमरा रंग नै दिहें रे नूनू
दादा तोरोॅ बूढ़ोॅ छौ नूनू
सच्चे बात कहै छियौ हम्में
लागै छै हमरा ठंडा नूनू
देखैं नी बहै छै पछिया बाव
रौदी में नै तनियोॅ टा ताव
छै फगुआ फाग जवानी केरोॅ
बूढ़ें ताव झूठे मूंछोॅ पर फेरोॅ
असर बात नै छौड़ा पर पड़लै
बोरी रंगोॅ से दादा केॅ हँसलै
रंग पड़तै दादा जी बौरलै
पोता साथें दादा भी फगुवैलै