हो अगर स्वीकार तुमको तो तनिक तुम मुस्कुरा दो / शिवम खेरवार
हो अगर स्वीकार तुमको तो तनिक तुम मुस्कुरा दो,
मैं तुम्हारी देहरी पर प्रेम अर्पित कर रहा हूँ।
वन, जलाशय, पेड़-पौधे देख मन उकता गया है,
इस वृहद मन का समंदर खोजता अब कुछ नया है।
क्यों हमेशा ही नदी इन सागरों के पास जाती,
क्यों हमेशा ही प्रतीक्षा तूलिका के हाथ आती?
मन उदधि के ज्वार-भाटे प्रेम का पर्याय लेकर,
बढ़ चुके हैं अब नदी की ओर समुचित न्याय लेकर,
मैं उदधि की भूमि, जल तुमको समर्पित कर रहा हूँ।
जब समर्पण की डगर पर प्रेमरथ अभिसार होगा,
कालखंडों में तभी इस प्रेम का विस्तार होगा।
सोचना क्या है प्रिये! अब सोचना बाक़ी नहीं है,
अंग महकाने लगी ख़ुशबू मगर साक़ी नहीं है।
बस तुम्हीं से हो सकेगी पूर्ण मधुशाला हृदय की,
साथ में चल गिन चलें कड़ियाँ प्रणय के अभ्युदय की।
साँस का पर्याय तुमको आज घोषित कर रहा हूँ॥