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हो गई हालत न जाने क्या हृदय की / जतिंदर शारदा
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हो गई हालत न जाने क्या हृदय की
बात अधरों तक न आ पाई प्रणय की
पी रहा हूँ प्यास लेकिन बढ़ रही है
ले कहाँ जाएगी यह हालत हृदय की
हर पराजय को नए यत्नों बदलो
जो हृदय में कामनाएँ हों विजय की
वक्त को मैंने वृथा ही खो दिया था
जानता हूँ इसलिए क़ीमत समय की
विरह के क्षण तो युगों में फैलते हैं
अल्प होती हैं मगर रातें प्रणय की
भूल जाते हैं वह अपनी क्रूरताएँ
हम से प्रत्याशा लगाए हैं विनय की
आओ मिल कर नव सर्जन की बात छेड़ें
अब करें क्यों व्यर्थ चिंता हम प्रलय की
शून्य में खो जाएंगे तन प्राण मेरे
बात होगी सिंधु में सरिता विलय की
दीप जल कर रोशनी बिखरा रहा है
उचित ही है उसकी उपमा रवि तनय की
आबोदाना ढूँढने निकला विहगम्
हृदय में चिंता लिए है निज निलय की