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हो गया खण्डित हरिक विश्वास है / ऋषिपाल धीमान ऋषि
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हो गया खण्डित हरिक विश्वास है
टूटती फिर भी नहीं क्यों आस है?
हर किसी के पास ऐसा दिल कहां?
जिसको सबके दर्द का अहसास है।
खुद पे भी अधिकार तेरा है कहां?
जब तलक इच्छाओं का तू दास है।
हर कली और फूल ज़ख़्मी है यहां
किस तरह का हाय! ये मधुमास है?
वक़्त की आँधी में आशा का दिया
बस यही तो आज मेरे पास है।
यों जहां में रोज़ ही मरते हैं लोग
हर कोई बनता नहीं इतिहास है।