हो गया जो फ़ना देश पर है जवां
उसके घर पर न कोई सहर है जवां
जान बचती रहे या कि जाये चली
अब हुआ ही नहीं कोई डर है जवां
किस तरह चैन की नींद सोये कोई
टूटता दहशतों का कहर है जवां
एक पल में मिली ख़ाक में जिंदगी
कौन जाने कि किसका सफ़र है जवां
प्राण जिस ने निछावर किये देश पर
अब तवारीख़ में वो अमर हैं जवां
आँधियाँ रोज़ आतंक की चल रहीं
हौसलों की मगर हर लहर है जवां
हैं हवायें शमा को बुझातीं मगर
रौशनी ख्वाब की सब के घर है जवां