भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हो गया प्रात, हो गया प्रात / सरोजिनी कुलश्रेष्ठ

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आ गई किरण खिल उठी धूप
अहा सुबह का सुन्दर रूप
हो गया प्रात, हो गया प्रात।

बगिया महकी, फूल खिले
तितली, भौरे हिले मिले
हो गया प्रात, हो गया प्रात।

उठ गये सभी जागरण हुआ
नदिया कलकल बढ़ती हलचल
हो गया प्रात, हो गया प्रात

गैया जागी, बछड़ा जागा
अपना झब्बू पिल्ला जागा
हो गया प्रात, हो गया प्रात