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हो गयीं राहें अकेली आज रूठा हमसफ़र है / रंजना वर्मा

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हो गयीं राहें अकेली आज रूठा हमसफ़र है।
था भरा जो सुधा प्याला मिल गया उसमें जहर है॥

रहबरी का दम भरा करते थे जो ताउम्र हमसे
दोष दें किसको कि अब तो राहजन ही राहबर है॥

साँस का भी क्या भरोसा कब कहाँ मुँह फेर जाये
जब यहाँ पर खून में डूबी हरिक शामो सहर है॥

है कहाँ मंजिल, न जाने है भी या है भरम खाली
दूर तक है रास्ता यह रास्तों का यह सफ़र है॥

एक टुकड़ा धूप का अरमान है ठिठुरी नदी का
एक मुट्ठी रोशनी का मूल्य यह सारी उमर है॥