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हो गयी श्याम से जब मुहब्बत मेरी / रंजना वर्मा

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हो गयी श्याम से जब मुहब्बत मेरी
है चमकने लगी तब से किस्मत मेरी

ख्वाब में मैंने बरसों तलाशा जिसे
अब वही बन गयी है हक़ीक़त मेरी

रौशनी के लिये रोज़ बाली शमा
पा रहे पर पतंगे भी सोहबत मेरी

साथ तनहाइयों का किया था मगर
अब किसी को है शायद जरूरत मेरी

जब से छोड़ा जमाने के दस्तूर को
लोग करने लगे हैं शिकायत मेरी

सत्य की राह छोड़ी कभी भी नहीं
हाथ है साँवरे के हिफाजत मेरी

नाम ले कर उसी का जपूँ रात दिन
पड़ गयी होगी उसको भी आदत मेरी

वो खुदा है या बन्दा नहीं जानती
पर कबूले कभी तो इबादत मेरी

कौन समझेगा उल्फ़त की बारीकियाँ
दर उसी का है अब तो अदालत मेरी