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हो गेलऽ भोंद / अरुण हरलीवाल

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बड़-बड़ गो आँख तोहर हो गेलो चोंध अब;
पढ़ल-लिखल तूँ काहे हो गेलऽ भोंद अब!

देखऽ, फिनो आ गेलो मउसम चुनाउ के;
नेता गिरे लगलन हे लोंदे के लोंद अब।

बोरा हल जे गोहुम के कोटा दोकान में,
बदल गेल रूप ओकर, बन गेल ऊ तोंद अब।

हम शहर से ऊबके आ गेली गाँव में;
मगर इहों कहाँ रहल माटी ऊ सोंध अब!