भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हो गोरिया रे तेरे आने से सज गई / रविन्द्र जैन
Kavita Kosh से
हो गोरिया रे, हो गोरिया रे
तेरे आने से सज गई हमरी ये टूटी फूटी नाव
नैया तो हमारा घर आँगना
इसी से ही पाना और माँगना
गहरी नदी का कोई न छोर
लहरों से ज्यादा मनवा में शोर
ओ गोरिया रे ...
अपना तो नित यही काम है
आने जाने वालों को सलाम है
कभी कभी आना इस नाव में
इक घर तेरा है मेरे गाँव में
ओ गोरिया रे ...
सब को किनारे पहुँचायेगा
माँझी तो किनारा नहीं पायेगा
गोरी ये दुआएं देना ज़रूर
माँझी से मैया हो नहीं दूर
ओ गोरिया रे ...