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हो चुका है फ़ैसला / सिर्गेय येसेनिन / वरयाम सिंह

फ़ैसला हो चुका है । मैंने छोड़ दिए हैं
कभी न वापिस आने के लिए अपने खेत ।
अपनी हलकी पत्तियों के संग
फड़फड़ाएँगे नहीं पॉपलर मेरे ऊपर ।

झुक जाएगा नीचे मेरे बिना हमारा छोटा-सा घर
बूढ़ा कुत्‍ता तो दम तोड़ चुका है पहले ही ।
सज़ा सुनाई है ईश्‍वर ने --
मैं मरूँगा मास्‍को की टेढ़ी-मेढ़ी सड़कों पर कहीं ।

अच्‍छा लगता है मुझे यह शहर
भले ही कुछ थुलथुला ज़राजीर्ण है वह,
सुनहरा निद्रालु मेरा एशिया
सो रहा है गुम्‍बदों पर ।

रात में जब चमकता है चन्द्रमा
चमकता है भगवान जाने किस तरह !
मैं चल देता हूँ सिर लटकाए
गली के परिचित मदिरालय में ।

बिना रुके शोर रहता है चलता रहता है वहाँ
सारी-सारी रात, सुबह तक,
वेश्‍याओं को मैं सुनाता हूँ कविताएँ
और डाकुओं के साथ पीता हूँ शराब ।

और तेज़ी से धड़कता है हृदय
बेतुकी निकलती है बातें मेरे मुँह से :
'मैं भी हूँ निकम्‍मा तुम्‍हारी तरह बेकार
मुझे नहीं जाना है वापिस अब कहीं ।'

झुक जाएगा मेरे बिना हमारा छोटा-सा घर,
बूढ़ा कुत्‍ता तो दम तोड़ चुका है पहले ही ।
ईश्‍वर ने सज़ा सुनाई है --
मैं मरूँगा मास्‍को की टेढ़ी-मेढ़ी सड़को पर कहीं ।

मूल रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह