भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हो जाइएगा आप भी पत्थर न देखिये / 'हफ़ीज़' बनारसी
Kavita Kosh से
हो जाइएगा आप भी पत्थर न देखिये
जादूगरों का शहर है मुड़ कर न देखिये
लग जाती है खुद अपनी नज़र भी कभी-कभी
हर लम्हा अपने हुस्न का पैकर न देखिये
पत्थर बरस रहे हैं फ़िज़ा फिर ख़राब है
दरवाज़े बंद कीजिये, बाहर न देखिये
रोशन ज़मीन पर भी हैं लाखों मह-ओ-नजूम
हैं आप दीदावर तो फ़लक पर न देखिये
कांटें भी हैं निगाह-ए तवज्जुह के मुस्तहक़
गुलशन में रह के सिर्फ़ गुले-तर न देखिये
ये देखिये निगाह से कैसी है नौ उरुस
क्या अपने साथ लाई है ज़ेवर न देखिये
पैदा नज़र भी कीजिये गर शौके-दीद है
औरों की आँख से कोई मंज़र न देखिये
सब एतबार ख़ाक में मिल जायेगा हफ़ीज़
किस किस की आस्तीं में है खंज़र न देखिये