भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हो जाने दो प्यार प्रिये / सुरजीत मान जलईया सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मत रोको खुद को तुम इतना
हो जाने दो प्यार प्रिये

सारे बन्धन तोडूंगा मैं
आगे बढ तुम हाथ थमाना
दुनियाँ चाहे जितना रोके
तुम अपना अधिकार जताना
फिर अपने इस प्रेम के आगे
हारेगा संसार प्रिये
मत रोको खुद को तुम इतना
हो जाने दो प्यार प्रिये

हर दिन लिख कर कर डालुंगा
चाहत का इतिहास तुझे
अपनी सासों से भी ज्यादा
रख लेना तुम पास मुझे
भव सागर से हो जायेगें
हम दोनों फिर पार प्रिये
मत रोको खुद को तुम इतना
हो जाने दो प्यार प्रिये

मेरी खातिर इक दिन ठहरो
मुझको गंगाजल कर दो
सारी तपिश मिटा दो मन की
सागर सा शीतल कर दो
होठों से छूकर के मुझको
कर दो गीता सार प्रिये
मत रोको खुद को तुम इतना
हो जाने दो प्यार प्रिये