भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हो जावो नी कोई मोढ़ लयावो / शिव कुमार बटालवी
Kavita Kosh से
हो जावो नी कोई मोढ़ लयावो, नी मेरे नाल गया अज लड़के
ओ अल्ला करे जे आवे सोहणा, देवां जान कदमा विच धर के
हो छल्ला बेरी ओये बूरे, वे वतन माही दा दूरे
वे जाणा पहले पूरे, वे गल सुण छलया, चोरा
वे काहदा लाया ही झोरा
हो छल्ला खू ते धरिये, छल्ला खू ते धरिये
गल्लां मूह ते करिए, वे सच्चे रब तों डरिये
वे गल सुण छलया, ढोला
वे रब्ब तों काहदा ई ओहला
हो छल्ला कालियां मरचां, वे मोहरा पी के मरसां
तेरे सिरे चढ़सा, वे गल सुण छलया, कावां
वे मावां ठंडिया छावां
हो छल्ला गल दी गानी, वे तुर गए दिलां दे जानी
वे मेरी दुखां दी कहानी, वे आ के सुण जा ढोला
वे तेतों कादा ई ओहला
वे छल्ला पाया ई गहने, ओये सजन बेली ना रहने
ओ दुःख जिन्द्ढ़ही दे सहने, वे गल सुण छलया, ढोला