भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हो झालो दे छे रसिया नागर पनां / रसिक बिहारी
Kavita Kosh से
हो झालो दे छे रसिया नागर पनां।
सारां देखैं लाज मरां छां आवां किण जतनां॥
छैल अनोखो क्यों कहयो मानै लोभी रूप सनां।
'रसिकबिहारी' लणद बुरी छै हो लाग्यो म्यारो मनां॥