भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हो दुनिया हमारी ऐसी / बालकृष्ण काबरा 'एतेश' / लैंग्स्टन ह्यूज़

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

देखता हूँ स्वप्न उस दुनिया का
जहाँ
किसी का तिरस्कार न करे कोई,
धन्य करे जहाँ प्रेम धरती को
और शान्ति सजा दे राहें इसकी।

देखता हूँ स्वप्न उस दुनिया का
जहाँ
जानते हों सभी राह प्रिय स्वतन्त्रता की,
जहाँ लिप्सा से न लिप्त हो आत्मा
न हो अभिशापित हमारे दिन लोभ-लालच से।

उस दुनिया का देखता हूँ स्वप्न
जहाँ
अश्वेत या श्वेत, हो कोई किसी जाति का,
मिले इस धरती के सुख सभी को बराबर
और हो हर व्यक्ति स्वतन्त्र,
जहाँ दुष्टता का सिर हो झुका,
और हर्ष का मोती करे
मानव-जाति की ज़रूरतें पूरी।

देखता हूँ स्वप्न —
हो दुनिया हमारी ऐसी!

अँग्रेज़ी से अनुवाद : बालकृष्ण काबरा ’एतेश’