हो बाबू करमचारी / ब्रह्मदेव कुमार
कैह्या ऐभोॅ बोलोॅ, हो बाबू करमचारी।
थकी गेलाँ-मरी गेलाँ, असरो निहारी॥
सप्ताह मेॅ ऐ दिन, मिटिगों के पारी
वहेॅ दिन आबै सेॅ, करै छोॅ तैयारी।
ऐल्होॅ तेॅ ऐल्होॅ नै तेॅ डूबकी देल्होॅ मारी॥
घरोॅ सेॅ रोजे-रोजे, बुलौक आबै छीं
दौड़ै छीु, हफसै छीं, घामों पोछै छी।
आय-जाति आरो निवासी परमाण-पत्र
तोरोॅ बिना बोलोॅ केना होतै तैयारी॥
जनता रोॅ कामोॅ मेॅ की रं कुनमुनाय छोॅ
खाता-खतियान देखै के, पाठ पढ़ाय छोॅ।
जबेॅ घुसियाय छोॅ, दसटकिया-सोॅ टकिया
झटाझट आपनों दसखत दै छोॅ मारी॥
सियो साहबें जबेॅ तोरोॅ वेतन रोकै छों
उँचोॅ आॅफिसरोॅ केॅ रिपोट लिखै छों।
तबेॅ लाचारी मेॅ घूमै छोॅ एरिया
आरो करै छोॅ वसूल मालगुजारी॥
डीसी साहबें जबेॅ तोरा सस्पेंड करै छों
बरखास्त करै के डोॅर भरै छों।
तबेॅ निसियाय दै छों दाँत तों आपनों
कŸोॅ सौटकिया, पड़ै छों तोरा भारी॥