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हो रहा हर तरफ क़त्ल ए आम आज भी / सिया सचदेव
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हो रहा हर तरफ क़त्ल ए आम आज भी
देश लगता है मुझको गुलाम आज भी
देखिये मेरे भारत में आ कर ज़रा
रिश्ते नातो का है एहतराम आज भी
लौ चरागों की मुझको को न भाये ज़रा
तेरे बिन सूनी सूनी है शाम आज भी
छोड़ कर ज़िस्म इक रोज़ उड़ जाएगा
ये परिंदा तो है ज़ेर ए दाम आज भी
इसलिए है उजाला मेरी रूह में
मेरी धड़कन में है मेरे राम आज भी
मुझसे ग़ाफ़िल ना हो पायेगा वो कभी
मेरे दिल में है जिसका क़याम आज भी
सरबलंदी ख़ुदा ने अता की सिया
उसके दम से है ऊँचा मक़ाम आज भी