भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हो विरोधी एक हो जाते हो क्या है / अमरेन्द्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हो विरोधी एक हो जाते हो क्या है
तुम न बोलोगे मुझे मुझको पता है

वह जो रहता है हवेली में नगर के
कोतवाली-थाने में उसका पता है

नाव को सागर में धीरे से उतारो
आँधी का भी डर है जोरों की हवा है

चन्दनों के वन सभी से पूछते हैं
राज क्या है जो वीरप्पन लापता है

कौन जा-जा के समझाए ये उसको
शहर के दादा से लगता है-गधा है

भोजपुर में कत्ल का है कौन दोषी
दिल्ली में इस बात का चर्चा चला है

उसके हाथों में खड़ी तलवार अब भी
और मेरी देह पर झुलता गला है

ये गजल तो एक दिन बस जान लेगी
गीत ही लिक्खो उसी में फायदा है

देखिए जिसको भी वह गुमसुम बना है
दोस्त यह अमरेन्द्र भी क्या भाजपा है ।