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हो सके तो प्यार को कभी कारोबारी कीजिये / ईश्वरदत्त अंजुम

 
हो सके तो प्यार को कभी कारोबारी कीजिये
जिस जगह से जो मिले उसको खुशी से लीजिये

चल पड़े हैं लेने देने के वसीले आज कल
ज़िक्र देरीना तअल्लुक का न हरगिज़ कीजिये

क़ीमती कपड़ों में अक्सर महफ़िलों में अक्सर हो शरीक़
रक़्स करने के लिए कुछ जाम खुल कर पीजिये

मिलने जुलने का बनाए सिलसिला लोगों से आप
पूछ लें उनका पता अपना पता मत दीजिये

ज़ाहिरी उल्फ़त जताएं रख के बातिन में फ़रेब
चाहे दिल में कोसिए मुंह से दुआएं दीजिये

अहले-दुनिया का यही बस आजकल दस्तूर है
खुद को जिससे फायदा हो बात ऐसी सोचिये

मतलबी दुनिया से अंजुम राबिता कायम रहे
है तक़ाज़ा वक़्त का हर इक से हंस कर बोलिये