भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हो सके तो प्यार को कभी कारोबारी कीजिये / ईश्वरदत्त अंजुम
Kavita Kosh से
हो सके तो प्यार को कभी कारोबारी कीजिये
जिस जगह से जो मिले उसको खुशी से लीजिये
चल पड़े हैं लेने देने के वसीले आज कल
ज़िक्र देरीना तअल्लुक का न हरगिज़ कीजिये
क़ीमती कपड़ों में अक्सर महफ़िलों में अक्सर हो शरीक़
रक़्स करने के लिए कुछ जाम खुल कर पीजिये
मिलने जुलने का बनाए सिलसिला लोगों से आप
पूछ लें उनका पता अपना पता मत दीजिये
ज़ाहिरी उल्फ़त जताएं रख के बातिन में फ़रेब
चाहे दिल में कोसिए मुंह से दुआएं दीजिये
अहले-दुनिया का यही बस आजकल दस्तूर है
खुद को जिससे फायदा हो बात ऐसी सोचिये
मतलबी दुनिया से अंजुम राबिता कायम रहे
है तक़ाज़ा वक़्त का हर इक से हंस कर बोलिये