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हो सदा जंग के आसार कहाँ लिक्खा है? / नवीन जोशी
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हो सदा जंग के आसार कहाँ लिक्खा है?
या तो हो जीत या हो हार कहाँ लिक्खा है?
आँखों के बदले तराज़ू के दो पलड़े ले कर,
ज़िंदगी भर करो बेव्पार कहाँ लिक्खा है?
अपनी पहचान को माथे पर सजाए हर दम,
रोज़ बैठो सर-ए-बाज़ार कहाँ लिक्खा है?
जो सभी करते चले आए वह ही तुम भी करो,
और होते रहो बेज़ार कहाँ लिक्खा है?
कोई हसरत या तमन्ना सर उठाने जो लगे,
तो गला घोट दो हर बार कहाँ लिक्खा है?
दिल जो कहता है सुनो, ख़ुश रहो, आबाद रहो।
सब की सुन कर रहो बीमार कहाँ लिक्खा है?
मानता यूँ है 'नवा' जैसे कहीं लिक्खा हो।
कहीं लिक्खा नहीं है यार! कहाँ लिक्खा है?