हो सारा संसार बराबर - 2 / रणजीत
आर बराबर, पार बराबर
हो सारा संसार बराबर।
मालिक और मजूर बराबर
बाम्हन और चमार बराबर।
एक-एक को दस दस बंगले
यह अन्याय अपार बराबर।
रोटी, कपड़ा, घर, इलाज पर
सबका हो अधिकार बराबर।
पांच उंगलियां नहीं एक सी
बात तुम्हारी यार, बराबर।
दुगुनी नहीं पर कोई किसी से
यह अन्तर स्वीकार बराबर।
लाख करोड़ गुना अन्तर यह
जुर्म, जबर, अतिचार बराबर।
धन, धरती, पानी बँट जाये
यंत्र, तंत्र, औजार बराबर।
उत्पादन के हर साधन पर
श्रमकर का अधिकार बराबर।
कुदरत बराबरी की हामी
उसका है व्यवहार बराबर।
हर प्रजाति के भीतर देखो
रूप रंग आकार बराबर।
फूल-फूल तितली-तितली में
सम्मिति का विस्तार बराबर।
कुछ लोगों के छल-बल का फल
विषम विकल संसार सरासर।
इसे बनाना ही होगा अब
इक वैश्विक परिवार बराबर।
जरा रोग पीड़ित अशक्त जन
मिले सभी को प्यार बराबर।
काफ़िर-मोमिन, आस्तिक-नास्तिक
सबके हों अधिकार बराबर।
सबके लिये बने यह पृथ्वी
सुख-सुविधा आगार बराबर।