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हौसला दिल का हवादिस में बढ़ा रक्खा है / 'मुशीर' झंझान्वी
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हौसला दिल का हवादिस में बढ़ा रक्खा है
शम्मा को मैं ने हवाओं में जला रक्खा है
देख ऐ हुस्न-ए-ख़ुद-आरा मेरे दिल की वुसअत
तेरे ग़म को ग़म-ए-दौराँ से जुदा रक्खा है
मैं तलातुम में भी साहिल की ख़बर रखता हूँ
मैं ने हर मौज को साहिल से मिला रक्खा है
इक तेरे नाम से रिश्ता हो बस इतनी सी है बात
वरना इस सुब्हा ओ ज़ुन्नार में क्या रखा है
अब मैं इक जलवा-ए-बे-रंग का शैदाई हूँ
हर चराग़-ए-हरम-औ-दैर बुझा रक्खा है
सर-गुज़श्त-ए-दिल-ए-बे-ताब सुना दी लेकिन
ग़म-गुसारों से तेरा नाम छुपा रक्खा है