हौसला हो तो हालात बदलते है / भावना जितेन्द्र ठाकर
जब नाशूर बना ख़ामोश उत्पिड़न गवाह बनकर चिल्लाता है,
तब थोपी गई विचारधारा का खंडन अवश्य होता है।
मत भूलो आक्रोश सहित स्वतंत्रता की प्रत्यंचा खिंची जानें पर,
क्रूरता का हनन अवश्य होता है।
विद्रोह की बू आती है एक नारी के वजूद से तब एक आँधी उठती है,
ज़लज़ले आते है, क्रांति का आगाज़ होता है।
चुप्पी ओढ़े सोई कमज़ोरी के तन से आक्रोश की ध्वनि उठती है,
तब डावाँडोल होते दरिंदों के पैरों तले से ज़मीन खिसकती है।
हकाधिकार पाने दौड़ते भागते थकी
नारी का ज़मीर जागते ही एकाधिकार का पुलिन्दा धरातल होते ढह जाता है।
यज्ञ होते ही अनुष्ठान का धुआँ आँखें जलाता है,
हिम्मत के समिध जुटा ज़रा विद्रोह के घी की अँजुरी से आज़ादी को आह्वान तो दे।
खुद के भीतर पैदा कर बगावत का बवंडर और फेंक आ अपनी लाचारी को दूसरी दुनिया में,
आततायियों का सामना कर।
लाठी उठा प्रतिघात कर,
जाया नहीं जाएगा तेरे हौसलों का प्रमाण तो दे,
सहने की आदी अबला ज़रा आगे तो बढ़।
कभी-कभी सहरा में भी फूल खिलते देखे है,
हिम्मत की नमी सिंचकर तो देख
हौसला हो तो हालात भी बदलते है।