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हौस्ला जीने का बिंदास लिए हो तुम तो / हरिराज सिंह 'नूर'
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हौस्ला जीने का बिंदास लिए हो तुम तो।
जो न बुझ पाएगी वो प्यास लिए हो तुम तो।
कैसी मजबूरी है तुम मिल नहीं पाते मुझ से?
जब कि मिलने की अजब आस लिए हो तुम तो।
चाहे तुम मानों न मानों मिरी क़ुर्बत का,
एक ख़ुशफ़हम-सा अहसास लिए हो तुम तो।
जो किसी ग्रंथ में मौजूद नहीं है अब तक,
अपने होंठों पे वो अरदास लिए हो तुम तो।
बिजली,बादल ही नहीं आग,हवा,पानी सब,
बस में उस ‘नूर’ के, आभास लिए हो तुम तो।