भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हौ तखनी नजरिया मोतीराम पड़लै / मैथिली लोकगीत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैथिली लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

हौ तखनी नजरिया मोतीराम पड़लै
ताबेमे दुलहिन फलका पर जुमलै
आ डर से कलेजा सती साँमैर के कँपैय।
धड़फड़मे हौ चीठी गिरौलकै
चीठी लऽकऽ मोती पढ़ैय।
तरबा लहरिया तखनी मोतीराम के चढ़ि गेलै यौ।-2
हौ सुनलय भौजी गै दिल के वार्त्ता
केकर ऑडर से फलका पर अऔलय
घुरि के भौजी गै कोहबर जइयौ
जहिना भैया बान्हल गेलै
बाप से भेंट हम सरबा के कऽ देबै
जहिना भैया सहोदरा कनै छै
ताल ठोकैय फलका ऊपरमे
कसि-कसि ताल मोतीराम ठोकैय
ताल धमक से हौ भगिना बजाबैय
ताल ठोकै छै राज महिसौथा
ताल धमक सतखोलिया जुमि गेल
हौ टेना पर हाथी करिकन्हा बन्है छै
सात सय हाथी टेनापर गिरलै
सखुआ-शीशो के पाता झड़ि गेल
हौ एकौ नइ पाता गाछमे रहलै
हा हर-हर हर-हर पाता झड़ैय
तखनी मनमे विचार करैय
सुनलय गे देवी देवी असामरि
तोरा कहै छी दिल के वार्त्ता
जुलुम भेलै मैया सतखोलियामे
एक वीर हमर मामा जनमलै
सात सय पाठा महिसौथा खेलबैय
दोसर वीर भगीना जनमलै
तीन सय साठि हाथी चरबै छी
ताल धमक सतखोलिया जुमि गेलै
कोने दुश्मन के गिरगिटीया नाँचि गेलै गै।।
भागल करिकन्हा घर से चललै
घड़ी चलल सतखोलिया जुमलै
अंगना रानी बनसप्ति बैठल
तखनी बेटा करिकन्हा कहै छै
सुन गै मइया दिल के वार्त्ता तोरा कहै छी
एकतऽ जुलुम सतखोलियामे भऽ गेल
सात सय हाथी टेंना पर गिरलै
सखुआ शीशोके पता झड़लै
ताला धमक से सतखोलियामे गिर गेलै।
एकर हलतिया मैया कहि दे
सगुन के पतरा मैया उचारि दे
एक वीर हमर मामा जनमलै
सात सय पाठा महिसौथा खेलबैय
दोसर वीर हम जनमलीये
नरबे लाख हाथी चराबै छी
तेसर वीर कोन जनम लेलकै
ताल ठोकलकै सतखोलियामे
ताल धमक से गै हाथी गिर गेल
तेकर हलतिया मैया हमरा की बता दीयौ गै।
जबेमे वनसप्ति सगुन उचारेय
तबेमे जवाब बनसप्ति दैये
सुनि ले रौ बेटा करिकन्हा सुनिलय
मोती बौआ के जरूरी पड़लै
ताल ठोकलै फलका उपर से
जल्दी जइयौ महिसौथा जइयौ
ताल जवाब मोतीराम बजबै छै रौ।
सब खबरिया भगिना, बौआ के
बुझि लीहै रौऽऽ।
एतेक सवाल करिकन्हा सुनैय
पले घड़ीमे फलका जुमि गेल
सब हलतिया करिकन्हा सुनैय
जतरा बनाबै छै मोरंग राज के
कोशिका लगमे मोती जुमलै
सुखले नदी मोतीराम देखैय
बिन जल के जल बजरलै
तछ तऽ लछ हाथ कोशी फनैय
आ छुरी फनकैय कोशिका नदीमे
केना आय पार बौरहबा सभ हयतै यौ
केना आय पार नारायण
देवता आय हेतै कोशी माय-2।
मनमे विचार बौआ मोती करै छै
हकन बिकन बौआ मोती कनै छै
अरजी करै छै माता कोशी के
सुनियौ गै माता कोशीका
भैया हमर बान्हल गेलै
सुखले नदी गै पार उतारि दे-2
कतबो कहै छै बात नइ मानै छै
चारि-चारि हाथ कोशी फनै छै
मोती के बात कोशी नै करै छै
तरबा लहरिया मोती के चढ़ि गेल
सुनिलय रौ भगिना दिल के वार्त्ता
कतबो कहै छी कोशी नइ मानै छै
केना पार बौआ कोशी के हयबै
केना पार हम कोशिकामे हयबै हौ।