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हौ भोर भेलै भिनसरबा भेलै / मैथिली लोकगीत

मैथिली लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

हौ भोर भेलै भिनसरबा भेलै
सवा पहर दिन उठि के एलै
कोहबर घरमे चन्द्रा उठैय
अचकिं नींन चन्द्रा तोड़ि लैय
पहिले नजरि गात पर दै छै
एको गहना गात नै देखैय
उलटे चन्द्रा कोहबर गिरलै
डॉर के साड़ी देखै नै छै
गात के चोलीया सवा लाख के
खाली देहिया चन्द्रा पड़ल
मने मन जे चन्द्रा सोचैय
केहेन परलोभीया स्वामी भऽ गेल
हौ केहेन परलोभीया स्वामी भऽ गेल।
हमरा गातमे चोरी केलकै
चोरी कऽ कऽ ड्योढ़ी सुतल छै
हँसी-मजाकमे बेइमनमा हमरा लऽ लेलकै यौ।।
हौ एकटा हाथ चन्द्रा छाती पर देने छै
एक हाथ चन्द्रा के हौ लेलकै
ड्योढ़ी पर अयलै
स्वामी नरूपिया के चन्द्रा जगबैये
सुनऽ सुनऽ हौ स्वामी नरूपिया
दिल के वार्त्ता तोरा कहै छी
से सभ समान बेइमनमा केना कऽ लेलीयै यै।।
हौ अचकिं नींन देवता तोड़ै छै
खाली देहिया चन्द्रा देखैय
हँहु के जवाब ने दैय
मने मन राजा हौ नरूपिया सोचै छै
आब नै परान हमरा बँचतै
सुनऽ सुनऽ हे रानीयाँ सुनि ले
कथि लय दोष तू रानीयाँ लगाबै छह
एको समान हम नै चोरौलियऽ
कोहबर घरमे पैर ने देलीयऽ
तोहरा समान रानीयाँ हम नै चोरौलियौ यौ।
हौ एत्ते बात जब नरूपिया कहै छै
मुंगीया नौरीया के चन्द्रा बजबैये
सुनऽ सुनऽ मुंगीया गै दिलक बतिया
डाका गै पड़ि गेलै कोहबर घरमे
गै कोन दने चोरबा महलमे अयलै
सबे समान चोरबा लऽ गयलै
आ सबटी समानबा चोरबा नौरीया भागि गेलै यै।
एको नइ समखिया हम नै बुझलीयै
तबे जवाब हम बाबू के देबै
आ केना रहबै राज पकरिया
अबलटि लगलै कोहबर घरमे।
जाकऽ खबरिया ड्योढ़िया पर कऽ दियौ हौ।