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हौ सुग्गा जे चललै जोगिया नगर के / मैथिली लोकगीत

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मैथिली लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

हौ सुग्गा जे चललै जोगिया नगर के
घड़ी चलैय पहर बीतैय
पले घड़ीमे जोगिया के जुमलै।
चनन गाछ तर बुढ़िया बैठल
नीरसौ भीलीनियाँ डलियाँ बीनैय
झूकि प्रणाम सुगना जे केलकै
उपरमाँहि नजरि खिराबैय
सुगना शरीर रूप बुढ़िया देखैय
छाती पीटैय नीरसो भीलीनियाँ
हौ एत्तेक दिन जोगियामे बसलीयै
हा एहेन सुगना कहियो नै देखैलीयै
केहेन रूप तऽ आइ सुगना के लगै यौ।
ताबे जवाब बुढ़िया नीरसो दै छै
सुनऽ सुनऽ हौ सुगना सुनिलय
दिल के वार्त्ता तोरा कहै छी
कतऽ रहै छी कतऽ बसै छी
हा केकर पोसल सुगना छिअ
तेकरो हात हमरा कहिदय
हा किये कारण जोगियामे एलऽ
सब तऽ समाखा हमरा सुगना बता दीअ यौ।।
हौ एत्तेक बात हीरामनि सुनै छै
तबे जवाब सुगना दै छै
सुन गै मैया मैया नीरसो
गै हम जे जाति पंछी छीयै
धौलागिरी के वासी छीयै
गै सीरी नरूपिया सीरी सतबरता
धौलागिरीमे हमरा पोसलकै
हा राज महिसौथा हमरा लऽ गेलै
राजा सलहेस के सुगना छीयै
नाम हीरामनि हमरा लगै छै
जरूरी पड़ि गेलै हमरा मालिक के
तऽ ये लऽकऽ जोगियामे आइ अइलीयै यै।
जल्दी आइ भेंट हमरा मालिक से करा दीयौ यै।