छुई मुई है ह्रदय,
छू लो तो मुरझा जाता है,
किरणों के पंख तो लग नही सकते,
फिर क्यों ये छूना चाहता है,
- सूरज की जलती आग को।

रेशमी धागों में देखो,
बंधता ही जाता है पल पल,
रिश्तों के दलदल में देखो,
धंसता ही जाता है पल पल,
एक ख़्वाब जो टूटा तो क्या,
फिर नया ख़्याल पल पल,
मुझ से ही कुछ रूठा रूठा,
मेरा ही दर्पण वो पल पल।

और बारिशों के मौसमों मे कभी,
शाखों से होकर गुजरना,
शबनमी अहसास लेकर,
पथरीली सड़कों पे चलना,
भागती दुनिया से हटकर,
अपनी ही राहें पकड़ना,
शौक़ इसके हैं निराले,
कब तलक कोई संभाले,
क्या करूं, मुश्किल है लेकिन,
खुद से ही बचकर गुजरना।

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