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ह्लवह सखि! शशधर सुखद सुठार / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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ह्लवह सखि ! शशधर सुखद सुठार। यह सखि ! शुभ्र ज्योत्स्ना-सार॥
वह सखि ! सूर्य ज्योति-दातार। यह सखि ! द्युतिमा सूर्याधार॥
वह सखि ! अग्रि देवता ताप। यह सखि ! शक्ति दाहिका आप॥
वह सखि ! सागर अति गभीर। यह सखि ! जलनिधि जीवन नीर॥
वह सखि ! सुन्दर देह सुठाम। यह सखि ! चेतन प्राण ललाम॥
वह सखि ! भूषण सुषमा-सार। यह सखि ! स्वर्ण भूषणाधार॥
वह सखि ! अतुल-शक्ति बलवान। यह सखि ! शक्तिमूल, बल-खान॥
वह सखि ! सदा सुवर्धन रूप। यह सखि ! रूपाधार अनूप॥
वह सखि ! अलख निरजन तव। यह सखि ! तवाधार महव॥
वह सखि ! मुनि-मोहन सुखधाम। यह सखि ! स्वयं मोहिनी श्याम॥
वह सखि ! कला-कुशल रमनीय। यह सखि ! स्वयं कला कमनीय॥
वह सखि ! अग-जग-सुख-आगार। यह सखि ! तत्सुखकी भण्डार॥