भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
७२० / २५० असलहों का कारीगर-2 / अनिल पुष्कर
Kavita Kosh से
‘डाई अनदर डे’
इसी बीच रिलीज़ हुई ।
दूसरी ओर आस्था का बचपन बुरा गुज़रते देखा गया
किसी ने देखा, भरी पूरी नंगी आँखों से हुस्ना को
वो जान से मार देती मगर
विस्मरण से ग्रसित झाँकती है अतीत
एक नाव डूबती उतराती है समन्दर में
वो नए हालात तलाश में इधर उधर भटकती
उत्तर अमरीका, न्यूयार्क शहर और न्यूजीलैण्ड से होती हुई
हिन्दुस्तान आ पहुँची है
लगा रही है चक्कर
लार्ड आफ़ द रिंग्स की यादों के साथ
देखा साबरमती ट्रेन धधकती जल रही है
गिर रहा है गर्भ, मुल्क की कोख से
अनचाही ख़्वाहिशों को सदा के लिए मिटाया जाना तय हुआ है ।