भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नया वर्ष आने दो / कन्हैयालाल मत्त
Kavita Kosh से
जो बीत गया है
उसे बीत जाने दो
हँसता-मुस्काता
नया वर्ष आने दो !
चल पड़ी सवारी प्राची से
दिनकर की
लो, करो आरती
सद्यजात वत्सर की
मन की वीणा को
सामगान गाने दो !
कह गई किरण कानों में
आज सवेरे---
हैं भूत- भविष्यत्
वर्तमान के चेरे
जो हुआ अस्तमित
उसे शान्ति पाने दो !
श्रम-स्रवित गंध से
शस्त करो युग-पथ को
बढ़ने दो आगे-- बंधु,
समय के रथ को
इतिहासों को
परिवर्तन नए लाने दो !
आकण्ठ-मग्न होकर जो
व्यंग्य-विधा में
है देख रहा लक्षणा
सहज अभिधा में
उस छन्दव्रती के
ताने भुगताने दो !
हँसता-मुस्काता
नया वर्ष आने दो !